संवाददाता अशोक मुंडा।
रांची (झारखंड)। दिनांक 09 01 2024 रांची से 65 किमी दूर उलीहातू जहां बिरसा मुंडा का जन्म स्थल है, वहां से कुछ ही दूर डोंबारी बुरू आज भी आदिवासियों के लिए शौर्य स्थल के नाम से जाना जाता है। जहां से 9 जून 1900 ई में भगवान बिरसा मुंडा जी ने उल्गुलान का नारा दिया था। आज झारखण्ड में आदिवासी समाज के लिए सीएनटी और एसपीटी एक्ट जो बना है, वह भारत के आदिवासियों के जमीन के लिए सुरक्षा कवच माना जाता है, जो बिरसा मुंडा जी के काफी संघर्ष और बलिदान के प्रतिफल है। झारखण्ड में आदिवासी जमीन बचाने को लेकर अंग्रेजों के द्वारा एक कानून लाया गया था।
बिरसा मुंडा महज 25 वर्ष के उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ जल जंगल जमीन बचाने एवं आबुआ दिसुम, अबुआ राज, यानि मेरा देश, मेरा राज, का नारा देते हुए लड़ाई लड़ा था। परंतु दुःख इस बात की होती है, की जिन्होंने पूरे राज्य और देशवासियों के लिए अपना जीवन की आहुति दे दी। उसके बावजूद भी आज हमारे देश में लूट - खसोट, भय - भूख, भ्रष्टाचार और आदिवासी युवक, युवकों को दो वक्त की रोजी रोटी के लिए पलायन दूसरे राज्यों एवं देश में करना पड रहा है। ऐसे में हमारे क्रांतिकारियों का लड़ाई बेकार जा रहा है, ऐसा प्रतीत होता है। देश की आजादी के 76 साल होने के बावजूद भी झारखण्ड विकास की राह देख रहा है। बिहार राज्य से अलग झारखंड की कल्पना करते हुए भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन के अवसर पर ही राज्य को अलग पहचान सन 15 नवंबर 2000 ई में मिला। जो एक झारखण्ड के लिए एक ऐतिहासिक दिन माना जाता है।
भगवान बिरसा मुंडा जी ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए हमेशा अपने सहयोगियों के साथ बैठक कर लोहा लेने के लिए योजना बनाते थे, अंग्रेजों के साथ लड़ाई लड़ने में महिलाओं का भी बहुत बड़ा योगदान था। जिनका नाम आज तक इतिहास में दर्ज नहीं है, खूंटी जिला के हातु जिऊरी, सोयाको थाना क्षेत्र में आता है। इस गांव से लोकोम्बो मुंडा, पति स्व मझिया मुंडा का नाम इतिहास में दर्ज नहीं है। जिनकी मृत्यु 9 जनवरी 1900 में डोंबारी बुरू में हो गई थी, जहां काफी संख्या में मुंडा लोग एकत्रित होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए योजना बना रहे थे। ठीक उसी समय अंग्रेजों के द्वारा उस स्थान को घेर कर अंधाधुंध फायरिंग कर दिया गया था, जिससे काफी संख्या में महिला एवं पुरुषों की भी हत्या हो गई थी, जो जलियांवाला बाग हत्याकांड से भी भयावह था, आज इसे इतिहास के पन्नों में दर्ज होना चाहिए।
डोम्बारी गोली कांड के तुरंत बाद जब वहां अंग्रेजी कमिश्नर स्टडीफील्ड ने मिसेज रोसे के साथ डोम्बारी बुरु पहुंच कर देखा कि लोकोम्बो के दो बेटे में एक बिनसाय मुंडा जिनका उम्र 12वर्ष था, जिसकी गोली लगने से मौत हो चुका था, और दूसरा जो मृत मां के शरीर से लिपट कर मात्र 9 माह एक छोटा सा बालक अपने मां का दूध पी रहा था, जिसे अपनी आंखों से देखकर तुंरत गोली चलाने का आदेश बंद कर उस नन्हे बालक को मिसेज रोसे अपने साथ लेकर चली गई एवं महारानी विक्टोरिया की गोद में सौंप दी। और कहा कि आपके राज्य में सूर्यास्त नहीं होती है, इसलिए निर्दोष लोगों पर गोली चलाया जाता है, और वह उस बच्चे को लेकर इंग्लैंड चली जाती है। बाद में वह बालक फिर वापस नहीं आया,जो आज तक डोम्बारी बुरु शहीद स्थल के शिलापट्ट में नाम दर्ज है। बिरसा मुंडा के सहयोगी नायकों में अभी भी कितने नाम गुमनाम है, खूंटी के उलीहातू में भगवान बिरसा मुंडा जयंती 15 नवंबर को पूरे देश में श्रंद्धाजलि दी जाती है, और आजादी का अमृत महोत्सव भगवान बिरसा मुंडा जी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। देशव्यापी अभियान भी इनके महत्व को बताता है, जिससे इनका सम्मान और भी देश के कोने-कोने में बढ़ा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
ऐसे में बाबा तिलका मांझी, तेलंगाना खड़िया सिद्धो कान्हूचांद, भैरव, बुधूभगत, निलाम्बर, पीतांबर, लोकोंबो मुंडा सिगनी मुंडा, चंपा मुंडा, मांकी मुंडा, चिजी नाग, लेबू मुंडा, गया मुंडा ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए बिरसा मुंडा का रास्ता खोला था। लेकिन इतिहास में ऐसे महान क्रांतिकारी का नाम दर्ज नहीं है, जो काफी ना इंसाफी है। सईल रकब डोम्बारी बुरु की अंतिम लड़ाई का उदाहरण है, 9 जनवरी 1900 ई. जब डोंम्बारी बुरू में कैप्टन रोसे ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। उसी समय जिऊरी सोयाको के मझिया मुंडा की पत्नी लोकांबा मुंडा, डूडांग मुंडा की पत्नी जिगनी मुंडा, बुकान मुंडा की पत्नी, चंपा मुंडा कैप्टन रोसे के सैनिकों के साथ लड़ते-लड़ते शहीद हो गई थी, और सैनिकों ने इनके 12 वर्षीय पुत्र बिंनसाय मुंडा को भी मार डाला था, जिऊरी के अलावे भी गुटूहातू गांव के लोगों का भी बहुत बड़ा योगदान था, गुटूहातू के ही हाथीराम मुंडा और हांडी राम मुंडा दोनों मगंन मुंडा के बेटे थे। जिनका बिरसा आंदोलन में काफी अहम योगदान था, इन दोनों भाइयों को अंग्रेजों ने घायल अवस्था में ही जिंदा दफना दिया था। मगंन मुंडा के घर में रहने वाले लेकुवा मुंडा भी डोम्बारी बुरु में गोली से मारा गया था। इस तरह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ने मे एक बहादुर महिला मांकी मुंडा का भी नाम आता है, जो गया मुंडा की पत्नी थी, गया मुंडा, जो बिरसा मुंडा आंदोलन में दाहिना हाथ कहे जाते थे। गया मुंडा को अंग्रेजों ने पकड़ने के लिए उनके घर गया था, तब उनकी पत्नी मांकी मुंडा, उनकी बेटियां चिंगी नाग, लेंबू और उनकी बहुओं ने टांगी, तीर कटारी, धनुष, लाठी से सैनिकों पर हमला कर गया मुंडा को बचाने का प्रयास किया था। ऐसे में महान क्रांतिकारी गुमनाम शहीदों के परिवार को सम्मान देने के बजाय उन्हें नक्सलियों के नाम प्रताड़ित और परेशान किया जा रहा है, ऐसे में पूरे भारत के आदिवासी समाज की ओर से के परिवार को सम्मान पूर्वक उनके भरण पोषण, शिक्षा रोजगार से जोड़कर आर्थिक रूप से मजबूत किया जाए और देश और राज्य के लिए जिन्होंने ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी है, उन्हें सम्मान दिया जाए।