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रांची, 9 जून 2025, दोपहर 02:03 बजे (IST): आज, स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और आदिवासी समुदाय के प्रेरणास्रोत भगवान बिरसा मुंडा की 125वीं पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें गहरी श्रद्धांजलि अर्पित की। झारखंड की धरती पर स्थित उनकी भव्य सुनहरी मूर्ति के समक्ष पीएम मोदी ने पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उनके बलिदान और समर्पण को याद किया। इस अवसर पर पीएम ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक भावनात्मक तस्वीर साझा की, जिसमें वे मूर्ति के पास खड़े होकर नमन करते दिखाई दे रहे हैं। ट्वीट में उन्होंने लिखा, "स्वतंत्रता संग्राम के महानायक भगवान बिरसा मुंडा जी को उनके बलिदान दिवस पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। आदिवासी भाई-बहनों के कल्याण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका त्याग और समर्पण देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।" यह तस्वीर और संदेश न केवल बिरसा मुंडा के योगदान को सम्मानित करता है, बल्कि देश के प्रति उनके अनुकरणीय बलिदान को भी रेखांकित करता है।
ऐतिहासिक महत्व और संघर्ष की गाथा: भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातू गांव में एक गरीब मुंडा परिवार में हुआ था। उनके जीवन की शुरुआत कठिनाइयों से भरी रही, लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और अपने समुदाय के प्रति समर्पण ने उन्हें एक क्रांतिकारी नेता बना दिया। 19वीं सदी के अंत में, जब ब्रिटिश शासकों ने आदिवासी क्षेत्रों में अपनी जमींदारी प्रथा और कराधान नीतियों को लागू करना शुरू किया, तो इससे मुंडा और ओरांव समुदायों की आजीविका और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा। बिरसा मुंडा ने इस शोषण के खिलाफ आवाज उठाई और 1899-1900 के दौरान 'उलगुलान' (महान विद्रोह) का नेतृत्व किया। इस आंदोलन में लगभग 6,000 से अधिक आदिवासी योद्धाओं ने हिस्सा लिया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक साहसिक चुनौती थी। उनका लक्ष्य केवल सत्ता से मुक्ति ही नहीं, बल्कि अपनी जल, जंगल और जमीन की रक्षा करना था, जो उनकी पहचान और अस्तित्व से जुड़ा था।
ब्रिटिश नीतियों पर प्रभाव: इतिहासकारों और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) के शोध के अनुसार, बिरसा मुंडा के इस विद्रोह ने ब्रिटिश सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया। उनके संघर्ष का परिणाम था 1908 में छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट का लागू होना, जो आदिवासियों को उनकी भूमि पर कुछ अधिकार प्रदान करने वाला पहला औपनिवेशिक कानून था। हालांकि यह कदम पूरी तरह से उनके सपनों को साकार नहीं कर सका, लेकिन यह आदिवासी अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण शुरुआत थी। बिरसा मुंडा की अल्पायु में मृत्यु (9 जून 1900) के बावजूद, उनकी विरासत ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया और आदिवासी आंदोलनों की नींव रखी।
वर्तमान संदर्भ और सम्मान: आज बिरसा मुंडा को 'धरती आबा' (पृथ्वी के पिता) के रूप में याद किया जाता है, और उनकी स्मृति को जीवंत रखने के लिए वर्ष 2021 में उनकी जयंती को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में घोषित किया गया। इस दिन को मनाने के लिए देश भर में विभिन्न सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों में उनकी कहानियों को साझा किया जाता है। दिल्ली में सराय काले खान बस स्टैंड को उनके नाम पर 'बिरसा मुंडा चौक' नाम दिया गया, जो 15 नवंबर 2024 को उनकी 150वीं जयंती पर घोषित हुआ था। यह कदम केंद्र सरकार की ओर से आदिवासी नायकों के योगदान को सम्मान देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
आज के कार्यक्रम: 9 जून 2025 को, बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर झारखंड सहित देश के विभिन्न हिस्सों में स्मृति सभाएं, प्रार्थना सभाएं और सांस्कृतिक प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं। स्थानीय आदिवासी समुदाय उनके जीवन और संघर्ष को याद कर रहे हैं, जबकि सरकार ने इस अवसर पर आदिवासी कल्याण और विकास से संबंधित कई पहलों की घोषणा करने की योजना बनाई है। पीएम मोदी का यह दौरा और श्रद्धांजलि न केवल एक औपचारिकता है, बल्कि यह आदिवासी समुदाय के साथ एकजुटता और उनके अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता का प्रतीक भी है।
समाज में प्रभाव: बिरसा मुंडा की कहानी आज भी प्रासंगिक है, खासकर जब वर्तमान में पर्यावरण और भूमि अधिकारों के मुद्दे चर्चा में हैं। उनके संघर्ष को आधुनिक संदर्भ में देखते हुए, कई सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् उनकी विचारधारा को अपनाने की वकालत कर रहे हैं। पीएम की इस श्रद्धांजलि ने सोशल मीडिया पर भी व्यापक चर्चा छेड़ दी है, जहां कुछ लोग उनके योगदान की सराहना कर रहे हैं, जबकि कुछ ने उनकी विरासत के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की है।
इस तरह, भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर आयोजित यह समारोह केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि उनके सपनों को साकार करने की दिशा में एक नई शुरुआत का प्रतीक है।