वनों की रक्षा के लिए ग्रामीणों का हौसला: मुनमुना में अवैध कटाई के खिलाफ बुलंद आवाज़
June 03, 2025
जंगल की तबाही और ग्रामीणों का गुस्सा
मुनमुना के बीट क्रमांक 442 में पिछले कुछ समय से सागौन और नीलगिरी जैसे कीमती पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई की खबरें सामने आ रही हैं। ये पेड़ 40-50 साल पुराने हैं, जिनका न सिर्फ़ औषधीय महत्व है, बल्कि ये जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन के लिए भी जरूरी हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग की शह पर ये कटाई हो रही है। स्थानीय निवासी रामू बैगा कहते हैं, “ये जंगल हमारे लिए मंदिर हैं। इन्हें काटना हमारे दिल को चोट पहुँचाने जैसा है। वन विभाग के लोग हमें जवाब देने की बजाय सिर्फ़ बहाने बनाते हैं।”
पिछले महीने भेड़ागढ़ के बैगा पारा में भी ऐसी ही अवैध कटाई का मामला सामने आया था। उस वक्त वन विभाग ने दो लोगों को गिरफ्तार कर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीणों का गुस्सा थमा नहीं। इस बार मुनमुना में जब ग्रामीणों को कटाई की खबर मिली, तो वे तुरंत मौके पर पहुँचे। उन्होंने न सिर्फ़ कटाई का विरोध किया, बल्कि शासन से साफ़ कह दिया, “हमें आपका हस्तक्षेप नहीं चाहिए। बस हमारे जंगलों को बख्श दो।”
वन विकास निगम पर सवालों की बौछार
ग्रामीणों का कहना है कि पंडरिया वन विकास निगम, जो वन संरक्षण और पौधारोपण का दावा करता है, असल में पुराने पेड़ों को काटने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है। स्थानीय निवासी सावित्री बाई बताती हैं, “निगम को खाली पड़ी ज़मीन पर पौधे लगाने चाहिए, लेकिन ये लोग हमारे जंगल के हरे-भरे पेड़ों को निशाना बना रहे हैं।” वन सुरक्षा समिति के सदस्यों ने भी निगम की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि निगम के कर्मचारी और अधिकारी जंगल की निगरानी करने की बजाय मुख्यालय में बैठकर कागज़ी कार्रवाई करते हैं।
इस पूरे मामले में शासन-प्रशासन की चुप्पी भी ग्रामीणों के लिए चिंता का विषय है। एक ग्रामीण, श्यामलाल, गुस्से में कहते हैं, “जब हम शिकायत लेकर जाते हैं, तो हमें टरकाया जाता है। अगर हमारी सुनवाई नहीं होगी, तो हम खुद अपने जंगलों की रखवाली करेंगे।”
निगम की सफाई और उसका सच
वन विकास निगम की ओर से एसडीओ दीपिका सोनवानी ने मामले पर सफाई दी है। उनका कहना है, “हम वर्किंग प्लान के तहत जंगल की सफाई कर रहे हैं। पुराने और कमज़ोर पेड़ों को हटाकर हम जंगल को स्वस्थ रखने की कोशिश कर रहे हैं। जुलाई में हम बड़े पैमाने पर पौधारोपण भी करेंगे।” लेकिन ग्रामीण इस जवाब से संतुष्ट नहीं हैं। उनका सवाल है कि अगर निगम का इरादा जंगल को बचाने का है, तो फिर 40-50 साल पुराने स्वस्थ पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं?
पर्यावरणविदों का भी मानना है कि निगम का तथाकथित “वर्किंग प्लान” पारदर्शी नहीं है। एक स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता, अनिल वर्मा, कहते हैं, “जंगल की सफाई के नाम पर कीमती पेड़ों को काटना और फिर सस्ते पौधे लगाकर दिखावा करना कोई नई बात नहीं है। असल में निगरानी तंत्र इतना कमज़ोर है कि अवैध कटाई को रोकना मुश्किल हो गया है।”
क्यों जरूरी हैं ये जंगल?
मुनमुना के जंगल सिर्फ़ पेड़ों का समूह नहीं हैं। ये ग्रामीणों की आजीविका, जलवायु संतुलन और जैव विविधता का आधार हैं। सागौन और नीलगिरी जैसे पेड़ न सिर्फ़ औषधीय गुणों से भरपूर हैं, बल्कि ये मिट्टी के कटाव को रोकने और पानी के स्रोतों को बनाए रखने में भी मदद करते हैं। इन जंगलों में रहने वाली बैगा और गोंड जैसी जनजातियाँ इन पर अपनी सांस्कृतिक और आर्थिक ज़रूरतों के लिए निर्भर हैं। इन पेड़ों की कटाई का सीधा असर इन समुदायों की ज़िंदगी पर पड़ रहा है।
ग्रामीणों की माँग और शासन की ज़िम्मेदारी
ग्रामीणों की माँग साफ़ है—अवैध कटाई पर तुरंत रोक लगे, और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। वे चाहते हैं कि वन विभाग और निगम की कार्यशैली में पारदर्शिता आए। साथ ही, वे स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण में शामिल करने की माँग कर रहे हैं, ताकि जंगल की रक्षा का जिम्मा उनके हाथों में हो।
इस पूरे मामले में शासन-प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। अगर वन विभाग और निगम की निगरानी इतनी कमज़ोर है कि अवैध कटाई बार-बार हो रही है, तो फिर इसका जिम्मेदार कौन है? ग्रामीणों का कहना है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती, तो वे अपने जंगलों की रक्षा के लिए और बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे।
आगे क्या?
मुनमुना के बीट क्रमांक 442 में उठी ये आवाज़ सिर्फ़ एक गाँव की कहानी नहीं है। यह उन तमाम समुदायों की पुकार है, जो अपने पर्यावरण और संसाधनों को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। यह घटना शासन को एक मौका देती है कि वह अपनी नीतियों और कार्यशैली पर गंभीरता से विचार करे। अवैध कटाई को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, और इसके लिए स्थानीय समुदायों को विश्वास में लेना ज़रूरी है।
ग्रामीणों की यह जंग जंगल बचाने की जंग है, और इसमें उनकी जीत पूरे समाज की जीत होगी। शासन को चाहिए कि वह तत्काल इस मामले की जाँच करे, जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई करे, और एक ऐसी व्यवस्था बनाए, जिसमें जंगल और जनता दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। क्योंकि अगर जंगल बचेगा, तभी हमारा भविष्य बचेगा।