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भारत में आदिवासियों पर अत्याचार: एक जमीनी सच्चाई

भारत में आदिवासियों पर अत्याचार: एक जमीनी सच्चाई


23 मई 2025 को, जब मैं, धन सिंह मरकाम, छत्तीसगढ़ की धरती से “The Tribal Post” के मंच के माध्यम से अपनी बात रख रहा हूँ, मेरे मन में एक सवाल बार बार आ रहा है—भारत में आदिवासियों की जनसंख्या 10.4 करोड़ (2011 जनगणना, 8.6%) है, फिर भी यह समुदाय क्यों सबसे अधिक अत्याचार झेलता है? “द ट्राइबल पोस्ट”, जो 1 सितंबर 2022 को शुरू हुआ, हमारा मिशन है आदिवासियों की आवाज को बुलंद करना। आइए, इस सवाल की जड़ों को समझें और समाधान की राह तलाशें।  

आदिवासियों पर अत्याचार: मेरे विचार
  1. ऐतिहासिक अन्याय और हमारी संस्कृति का तिरस्कार
    मैंने छत्तीसगढ़ के बस्तर के गाँवों में देखा है कि आदिवासियों को सदियों से “जंगली” या “असभ्य” कहकर हाशिए पर धकेला गया। औपनिवेशिक काल से लेकर आज तक, हमारी संस्कृति, भाषा, और परंपराओं को मुख्यधारा में जगह नहीं मिली। यह उपेक्षा हमें कमजोर करती है। मेरा मानना है कि जब तक हमारी पहचान को सम्मान नहीं मिलेगा, अत्याचार रुकना मुश्किल है।
  2. हमारी जमीन का लूटपाट
    छत्तीसगढ़ के जंगलों में, जहां मैं बड़ा हुआ, आदिवासियों की जमीन खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के लिए छीनी जा रही है। वन अधिकार अधिनियम (2006) लागू होने के बावजूद, 2025 में भी हमें बिना मुआवजे के विस्थापित किया जा रहा है। यह सिर्फ जमीन की चोरी नहीं, बल्कि हमारी आजीविका और इतिहास का अपमान है। मेरे विचार में, यह शोषण तब तक जारी रहेगा जब तक आदिवासियों को उनकी जमीन का हक नहीं मिलता।
  3. गरीबी और शिक्षा का अभाव
    मैंने अपने समुदाय में गरीबी और शिक्षा की कमी को करीब से देखा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के आंकड़े बताते हैं कि आदिवासियों में गरीबी दर गैर-आदिवासियों से कहीं अधिक है। छत्तीसगढ़ के गाँवों में स्कूल हैं, लेकिन शिक्षक और संसाधन नहीं। बिना शिक्षा के हम शोषण के चक्र से नहीं निकल सकते। मेरा विश्वास है कि शिक्षा ही वह हथियार है जो हमें सशक्त बनाएगा।
  4. कानूनों की अनदेखी
    पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (PESA) और वन अधिकार अधिनियम जैसे कानून हमारे लिए बने, लेकिन इनका पालन नहीं होता। मैंने देखा है कि भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता के कारण हमारे दावे खारिज हो जाते हैं। मेरा मानना है कि जब तक प्रशासन जवाबदेह नहीं होगा, हमें न्याय नहीं मिलेगा।
  5. नक्सलवाद और हमारी पीड़ा
    छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलवाद और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष ने आदिवासियों को कुचल दिया है। हम न तो सरकार के साथ हैं, न नक्सलियों के, फिर भी दोनों की ओर से हमें संदेह की नजरों से देखा जाता है। मैंने गाँवों में लोगों को डर और हिंसा में जीते देखा है। मेरा विचार है कि शांति और संवाद के बिना यह चक्र नहीं टूटेगा।
मेरे सुझाए समाधान
  1. कानूनों को जमीनी हकीकत बनाएं
    मैं चाहता हूँ कि PESA और वन अधिकार अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाए। डिजिटल तकनीक का उपयोग कर दावों की त्वरित और पारदर्शी सुनवाई हो।
  2. शिक्षा और रोजगार की रोशनी
    छत्तीसगढ़ के गाँवों में स्थानीय भाषाओं में शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण की जरूरत है। मैं चाहता हूँ कि हमारे बच्चे डिजिटल युग में पीछे न रहें।
  3. हमारी संस्कृति, हमारा गर्व
    आदिवासियों” का नारा है—“आदिवासी देश के मालिक हैं।” मैं चाहता हूँ कि स्कूलों में हमारी भाषा और परंपराएँ पढ़ाई जाएँ, ताकि हमारी नई पीढ़ी गर्व से जी सके।
  4. विकास में हमारी हिस्सेदारी
    मैं माँग करता हूँ कि कोई भी परियोजना बिना हमारी सहमति के शुरू न हो। हमारी जमीन, हमारा हक—यह सुनिश्चित होना चाहिए।
  5. शांति की राह
    बस्तर में हिंसा का अंत संवाद से हो सकता है। मैं चाहता हूँ कि सरकार और नक्सलियों के बीच बातचीत हो, ताकि आदिवासी डरमुक्त जीवन जी सकें।
    और आदिवासियों को नक्सली बता कर मरना बंद करें
निष्कर्ष
23 मई 2025 को, “The Tribal Post” के माध्यम से, मैं, धन सिंह मरकाम, यह कहना चाहता हूँ कि आदिवासियों पर अत्याचार हमारी व्यवस्था की नाकामी है। हमारी जमीन, संस्कृति, और हक छीने जा रहे हैं, लेकिन हम चुप नहीं रहेंगे। हमारा नारा—“जो जमीनी सच्चाई है, वो जमीनी हकीकत है; आदिवासी को बचाना है”—हमारी लड़ाई का प्रतीक है। “द ट्राइबल पोस्ट”, जो 15 राज्यों में निष्पक्ष पत्रकारिता के साथ खड़ा है, आपकी आवाज को बुलंद करता रहेगा। आइए, एक ऐसे भारत के लिए लड़ें जहाँ आदिवासी सम्मान और समानता के साथ जी सकें।
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