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SC/ST को 65% आरक्षण की मांग: विपक्ष का जन आंदोलन, बीजेपी नेता का तीखा जवाब - "मरने दो"



पटना, 10 जून 2025: बिहार में SC/ST (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति), पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों के लिए 65% आरक्षण की मांग को लेकर विपक्ष ने जोरदार जन आंदोलन शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने इस आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाई है, ताकि इसे न्यायिक समीक्षा से बचाया जा सके और SC/ST समुदायों सहित अन्य वंचित वर्गों को अधिक अवसर मिलें। इस मांग के साथ सोमवार को तेजस्वी ने बिहार विधानसभा में एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाने की अपील की, जिसके बाद सियासी घमासान चरम पर पहुंच गया है।

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SC/ST पर फोकस: जनसंख्या और आरक्षण का विवाद


2022 के बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या में SC/ST का हिस्सा क्रमशः 19.65% और 1.68% है, जबकि अति पिछड़ा वर्ग (EBC) 36.01% और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) 27.13% है। विपक्ष का तर्क है कि वर्तमान 50% आरक्षण की सीमा इन समुदायों, खासकर SC/ST, के अनुपातिक प्रतिनिधित्व को पूरा नहीं करती।

2011 की जनगणना के मुकाबले SC की आबादी में 12 साल में लगभग 55% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो इस दावे को बल देती है कि इन समुदायों को और अधिक आरक्षण की जरूरत है। हालांकि, यह वृद्धि जनसंख्या वृद्धि दर (25.6%) से दोगुनी होने के कारण विवादास्पद रही है, जिसे कुछ लोग डेटा सटीकता पर सवाल उठाते हुए देखते हैं।


 

SC/ST समुदायों के लिए आरक्षण की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी, जब संविधान ने इन वंचित वर्गों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए सकारात्मक भेदभाव की नीति अपनाई। वर्तमान में केंद्रीय नौकरियों में SC (15.34%) और ST (6.18%) का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात से कम है, जो इस मांग को और मजबूत करता है। विपक्ष का कहना है कि 65% आरक्षण SC/ST के लिए लंबे समय से लंबित न्याय होगा।

बीजेपी नेता का तीखा जवाब - "मरने दो"


बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने इस मांग पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मरने दो।" उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस और RJD इस मुद्दे पर दोहरा रवैया अपना रही है और इसे सियासी फायदा उठाने का जरिया बना रही है। जायसवाल ने दावा किया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पहले ही SC/ST, दलित, महादलित, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के लिए 65% आरक्षण देने का फैसला ले चुकी है, जो वर्तमान में पटना हाई कोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। जायसवाल ने RJD पर SC/ST और अन्य वंचित वर्गों के हितों को राजनीतिक चारा बनाने का आरोप लगाया।

कानूनी और ऐतिहासिक संदर्भ


1992 के सुप्रीम कोर्ट के मशहूर 'इंद्रा साहनी' मामले में आरक्षण की सीमा 50% तय की गई थी, ताकि सामान्य वर्ग के समान अवसर सुरक्षित रहें। हाल के दिनों में 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उप-आरक्षण की अनुमति दी, लेकिन दो जजों ने असहमति जताते हुए कहा कि 50% से अधिक आरक्षण "बराबरी के सिद्धांत" को नुकसान पहुंचा सकता है। दूसरी ओर, तमिलनाडु में 69% आरक्षण 1993 में 9वीं अनुसूची में शामिल होकर संरक्षित है, जो बिहार के लिए एक मिसाल पेश करता है। SC/ST के लिए आरक्षण को लेकर 1975 के एनएम थॉमस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे "सामाजिक समानता" के लेंस से देखा था, जो अब फिर से बहस में है।

सियासी और सामाजिक आयाम


यह मुद्दा बिहार की जाति आधारित राजनीति को और गहरा रहा है। SC/ST समुदायों के लिए आरक्षण हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है, क्योंकि इन समुदायों ने ऐतिहासिक रूप से सामाजिक बहिष्कार और आर्थिक असमानता का सामना किया है। 1990 के मंडल आयोग के बाद ओबीसी समुदायों, खासकर यादव और कुर्मी, ने राजनीतिक शक्ति हासिल की, लेकिन SC/ST का प्रतिनिधित्व अभी भी अपेक्षित स्तर पर नहीं पहुंचा। विपक्ष का दावा है कि वर्तमान सरकार SC/ST के हितों की अनदेखी कर रही है, जबकि बीजेपी इसे RJD की सत्ता लिप्सा से जोड़ रही है।

आगे की राह

विपक्ष का यह आंदोलन कितना प्रभावी होगा, यह कोर्ट के फैसले और जनता की प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा। SC/ST समुदायों के लिए 65% आरक्षण अगर मंजूर होता है, तो यह बिहार की सामाजिक संरचना में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। लेकिन अगर यह सिर्फ चुनावी हथियार साबित हुआ, तो SC/ST समुदायों की उम्मीदों पर फिर से पानी फिर सकता है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला और सियासी बयानबाजी इसकी दिशा तय करेगी।

सोर्स: प्रतीक पटेल x पोस्ट
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