उत्कृष्ट परिणाम की पर्यायवाची बनी, समाज की प्रथम महिला आर.ए.एस. अधिकारी बनी।
संवाददाता नाथूलाल सालवी
दिनांक 01/08/2025
सलूम्बर। बिना संघर्ष के कोई 'परिणाम' नहीं मिलता। दो अक्षर का 'लक' होता है। अढ़ाई अक्षर का 'भाग्य' । तीन अक्षर का 'नसीव' होता है। साढ़े तीन अक्षर की 'किस्मत'। ये तभी परिणाम देते है जब चार अक्षर की 'मेहनत' साथ होती है- राष्ट्रसंत ललित प्रभ के कथनानुसार। इन्हें आर.ए.एस. बनने वाली करूणा लड़ोती को इसे जोड़कर देखा जाय तो महान-संत के उद्गार एकदम सटीक इनके अनुकूल लगते है क्योंकि करूणा का 'लक' रहा है कि ये सादगी पसन्द और नरम दिल से विमल प्रकाश लड़ौती और उमादेवी के घर जन्मी। 'भाग्य' इन्हें इंजीनीयरींग की ओर खींच ले गया जहाँ से इन्होनें पूरे राज्य-राजस्थान में छात्रा वर्ग में चौथा स्थान पाया। 'नसीब' इनका अच्छा लिखाकर लाई कि इन्हें सुशील, सुसंकारित और संवेदनलशील जीवन-साथी राजेश जी मिले, जो वर्तमान में बैंक में उच्चाधिकार पद पर कार्यरत है। 'किस्मत' इतनी अच्छी रही कि एक बेटा और एक बेटी की माँ बनकर 'नारीत्व' रूप को सार्थक किया। 'मेहनत' में भी जी-जान लगाकर एक साथ 'बेटी', 'पत्नि' और 'माँ' के अनुरूप कर्तव्य निभाते हुए आर. एस.ए.एस. जैसी गरिमामयी प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर स्वयं और दोनों परिवारों का मान-सम्मान बढ़ाया। करूणा लडोती का उस सपने को सच कर दिखाना और लक्ष्य को हासिल कर लेना उस दृष्टिकोण को सही ठहराता है जेसा कि भारतवंशी महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के एक साक्षात्कार में कहा था 'सपने' सच होते है बस इसे खोजने की 'दृष्टि' और हासिल करने की 'दृढता' होनी चाहिए। उनका यह कहना भी था कि 'कोशिश' उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितना आपका 'लक्ष्य'। सचमुच कर दिखाया। 'साधूवाद' की पात्र है करूणा लडोती। सलूम्बर जिले के मुख्यालय, सलूम्बर में लड़ोती परिवार माता-पिता का यद्यपि-ज्यादातर समय उदयपुर में ही बीता क्योंकि पिता विमल प्रकाश सेवानिवृत्ति तक यहीं पर कार्यरत रहे और 'करूणा' का जन्म भी उदयपुर में ही हुआ। 'जीवन का निर्माण 'संस्कार से होता है। आचार्य वर्धमान के अनुसार और निश्चिततौर पर ऐसा ही अनुशासित-संस्कार गिता विमलप्रकाश जी से मिला होगा, इसमें 'माँ' उमा देवी की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही कि एक शिल्पकार की तरह इन्हें तराशकर गढ़कर सिर्फ और सिर्फ लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया होगा ताकि 'मंजिल' तक पहुँच सके इसलिए कि दुनिया की सबसे बड़ी 'शिलपकार माँ ही होती है जिसे उमा देवी ने चरितार्थ साकार कर दिखाया अपनी इकलौती संतान को आर.ए.एस. अधिकारी बनाकर। इनका यह कार्य तारिफे काबिल ही कहाँ जायेगा। ब्यूरोकेसी की भागीदारी बिना देश का निकास संभव नहीं' और 'अगर ब्यूरोक्रेसी' से चूक हुई तो देश का धन लूट जायेगा। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैसा कि 'सिविल सर्विस डे' पर कहा। चूँकि अब करूणा लड़ोती भी 'ब्यूरोक्रेसी' का एक हिस्सा बन चुकी है तब इन्हें जिम्मेदारी भी उसी अनुरूप निभानी होगी। निश्चित तौर से एक 'ब्यूरोक्रेट' के रूप में करूणा लड़ोती कामयाब होकर देश के विकास में भागीदारी निभायेगी। सरदार पटेल जिन्हें लौह-पुरुष भी कहा जाता है ने 'ब्यूरोक्रेसी' यानि 'नौकरशाही' को 'स्टील फ्रेम' कहा करते थे और आशा करते थे कि इनके निर्णय का आधार सिर्फ और सिर्फ देश हित में होना चाहिए।' एक आर.ए.एस. अधिकारी तौर पर करूणा ऐसा कर्तव्य निभाने में जरूर सफलता हासिल करेगी इसलिए कि-अपने 'जुनून' और 'जज्बे' के बुते पर जिस मुकाम पर ये पहुँची है उसे पूरा कने में ये कोई भी 'कोर-कसर' नहीं छोड़ेगी क्योंकि ऐसे ब्यूरोकेट्स' स्वयं आत्म निर्भर बनकर विपरीत परिस्थितियों के लिए हमेशा तैयार रहते है ताकि इनका निर्णय सदैव देश हित में ही होते रहें।आज के युग में व्यक्ति की पहचान उसके 'काम' और 'पद' के अनुरूप होती है फिर भी जिस समाज से उनका सम्बन्ध है, 'समाजोत्थान' में इनकी प्रतिबद्धता रहती है तो समाज में इनका मान-सम्मान बढ़ेगा ही इसके अलावा इनके माता-पिता और ससुराल पक्ष को भी सम्मानित दृष्टि से देखा जाऐगा। क्षेत्र 'छप्पन' और 'मेवल' में 'सालवी समाज' की एक मात्र 'प्रथम-महिला' आर.ए.एस. बनने पर हार्दिक अभिनन्दन करते हुए ईश्वर से इनके 'दीर्घायु' होने व कर्तव्य-निवर्हन में सदैव प्रथम रहने हेतु प्रार्थना करते हुए। इसी आशा और विश्वास में...।