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राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी: अमेज़न पर 24 घंटे में सबसे ज़्यादा बिकने वाली पुस्तक जो उजागर करती है भारत के भूले-बिसरे नायकों की गाथा

 



क्या आप जानते हैं कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदायों ने सबसे शुरुआती और सबसे लंबे समय तक चलने वाले विद्रोह किए? फिर भी, मुख्यधारा के इतिहास में इन नायकों और नायिकाओं को वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र मीणा की नई पुस्तक ‘राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी’ ने इस ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने का सशक्त प्रयास किया है, और यह पुस्तक अब अमेज़न वेबसाइट पर 24 घंटे में सर्वाधिक बिकने वाली किताब बन गई है!

अमेज़न पर अभूतपूर्व सफलता

डॉ. जितेंद्र मीणा ने खुद साझा किया कि “राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी” ने अमेज़न पर रिकॉर्ड बनाया है, जो आदिवासी विषयों पर पाठकों की बढ़ती रुचि को दर्शाता है। यह पहली बार है कि इस तरह की पुस्तक को इतना व्यापक प्यार और समर्थन मिला है। यह उपलब्धि न केवल पुस्तक की गुणवत्ता को दर्शाती है, बल्कि भारत के आदिवासी नायकों के योगदान को मुख्यधारा में लाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

इस पुस्तक को क्यों पढ़ें?

‘राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी’ सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक वैचारिक यात्रा है जो आपको भारत के उन अनसुने नायकों से मिलवाएगी, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ डटकर मुकाबला किया। यह पुस्तक आठ राज्यों के बारह आदिवासी नायकों और नायिकाओं की कहानियों को समेटती है, जिनमें तात्या भील, बिरसा मुंडा, जयपाल सिंह, और काली बाई भील जैसे नाम शामिल हैं। साथ ही, कई ऐसे नायक-नायिकाओं की कहानियाँ भी हैं, जिनके बारे में आपने शायद पहले कभी नहीं सुना।

डॉ. मीणा ने इस पुस्तक को साढ़े तीन साल के गहन शोध के बाद तैयार किया है। इसमें रोचक तथ्य शामिल हैं, जैसे:

“जल, जंगल, जमीन” का नारा किस आदिवासी नेता ने दिया?

न्यूयॉर्क टाइम्स ने किसे “रॉबिनहुड” की उपमा दी?

अंग्रेजों को गोकुल मीणा और भुवना मीणा जैसे नेताओं के आंदोलनों को दबाने के लिए मेवाड़, कोटा और आमेर की सेनाओं की मदद क्यों लेनी पड़ी?

गुंडाधुर कौन थे, जिनके नाम पर अंग्रेजों ने ‘गुंडा एक्ट’ बनाया?

आदिवासी दृष्टिकोण की ताकत

डॉ. मीणा, जो स्वयं एक आदिवासी समुदाय से आते हैं, इस पुस्तक में अपने अनुभवों और अनुभूतियों को गहराई से व्यक्त करते हैं। उनका कहना है, “आदिवासी समुदाय का दर्द और शौर्य वही बेहतर समझ सकता है, जो उस संघर्ष का हिस्सा रहा हो।” यह पुस्तक न केवल इतिहास को पुनर्लेखित करती है, बल्कि आदिवासी समुदायों के बीच एक साझा चेतना और पहचान को भी मजबूत करती है।

पुस्तक की खासियतें

12 नायकों की कहानियाँ: तिलका मांझी, टंट्या भील, रानी रोईपुलियानी, और अन्य अनसुने नायकों की गाथाएँ।

दस्तावेजी शोध: चार साल की मेहनत और तथ्यात्मक प्रमाणों पर आधारित लेखन।

महिला नायिकाओं का योगदान: हालांकि पुस्तक में केवल दो महिला नायिकाओं का उल्लेख है, यह आदिवासी आंदोलनों में महिलाओं की व्यापक भूमिका को रेखांकित करती है।

शैक्षिक महत्व: यह पुस्तक विश्वविद्यालयों, लाइब्रेरी, और सार्वजनिक वाचनालयों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है।

आपके लिए अवसर: इस पुस्तक को खरीदें और बदलाव का हिस्सा बनें

‘राष्ट्र-निर्माण में आदिवासी’ सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि भारत के इतिहास को फिर से जानने और समझने का एक मौका है। इसे खरीदकर आप न केवल अपने ज्ञान को समृद्ध करेंगे, बल्कि आदिवासी समुदायों के योगदान को सम्मान देने में भी हिस्सा लेंगे। यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए जरूरी है जो भारत के इतिहास, संस्कृति, और स्वतंत्रता संग्राम की गहराई को समझना चाहता है।

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क्यों खरीदें?

ज्ञानवर्धन: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी योगदान की अनकही कहानियाँ जानें।

प्रेरणा: उन नायकों और नायिकाओं की कहानियाँ जो इतिहास के पन्नों में खो गई थीं।

सामाजिक प्रभाव: इस पुस्तक को खरीदकर आप आदिवासी समुदायों के इतिहास को मुख्यधारा में लाने में योगदान देंगे।

विशेष नोट: इस पुस्तक का विमोचन जल्द ही होने वाला है, और इसे विश्वविद्यालयों और लाइब्रेरी में उपलब्ध कराने की योजना है। अभी प्री-ऑर्डर करें और इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बनें! अमेज़न पर इसकी लोकप्रियता इस बात का सबूत है कि पाठक इस विषय पर गहरी रुचि दिखा रहे हैं।

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आइए, मिलकर भारत के इन अनसुने नायकों की कहानियों को दुनिया तक पहुँचाएँ!

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