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गोंडवाना की राजनीति: नेताओं का बिखराव, समाज का नुकसान

 


क्या गोंडवाना का नाम सिर्फ़ राजनीति का "ब्रांड" बन गया है?

 संवाददाता – धन सिंह, कवर्धा: गोंडवाना की राजनीति आज सबसे बड़े संकट से गुजर रही है। एकता के बजाय संगठन और दल लगातार बंट रहे हैं। हर नेता अपनी पार्टी और झंडा लेकर आगे बढ़ता है, लेकिन समाज की ताक़त कमजोर होती जा रही है। सवाल यह उठ रहा है – क्या यह राजनीति आदिवासियों के हक़ के लिए है या फिर नेताओं की जेब भरने और फायदे के लिए?


बिखराव से किसका फायदा?

गोंडवाना के नाम पर दर्जनों संगठन और दल खड़े किए गए हैं। नतीजा यह है कि वोट बँट जाते हैं, समाज सत्ता से दूर रह जाता है और बाहरी दल मजबूत होकर उभरते हैं।

यह स्थिति बिल्कुल उसी तरह है जैसे दस रस्सियाँ बंधी रहें तो कोई नहीं तोड़ सकता, लेकिन अलग-अलग कर दी जाएँ तो उन्हें कोई भी आसानी से तोड़ देगा।


नेताओं से सीधे सवाल


  • क्या हर साल नई पार्टी बनाना समाज की ताक़त बढ़ाता है या घटाता है?
  • क्या गोंडवाना का नाम आदिवासियों के अधिकार बचाने के लिए है या नेताओं के फायदे के लिए?
  • क्या आप चाहते हैं कि आदिवासी हमेशा सत्ता से दूर रहें?
  • क्या आपकी राजनीति सिर्फ़ कुर्सी और पैसा कमाने तक सीमित है?


आदिवासियों का दर्द


नेताओं की इस राजनीति का खामियाज़ा सीधे आदिवासी समाज को भुगतना पड़ रहा है।

  • ज़मीन पर लगातार कंपनियों और बाहरी ताक़तों का कब्ज़ा हो रहा है,
  • जंगल कट रहे हैं और परंपरागत अधिकार खत्म हो रहे हैं,
  • जल स्रोतों पर नियंत्रण घट रहा है,
  • खनिज संपदा बाहर भेजी जा रही है।


लेकिन इन सब मुद्दों पर एकजुट आवाज़ उठाने के बजाय नेता गोंडवाना का नाम सिर्फ़ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

जनता की आवाज़


आदिवासी जनता अब सवाल कर रही है:

  • "क्यों हमारा वोट हर बार बँट जाता है?"
  • "क्यों हमारी ज़मीन, जंगल और जल छिन रहे हैं?"
  • "क्या हमारे नेता हमें बचाने आए हैं या हमें इस्तेमाल करने?"

समाधान – एकता ही असली ताक़त


अब वक्त आ गया है कि गोंडवाना के संगठन और नेता अपने-अपने स्वार्थ छोड़कर एक मंच पर आएँ। अगर यह एकता नहीं बनी, तो गोंडवाना का नाम नेताओं के भाषणों और चुनावी पोस्टरों तक ही सीमित रह जाएगा।
गोंडवाना की असली ताक़त उसकी एकता है। और जब तक यह एकता कायम नहीं होगी, तब तक न सरकार बनेगी और न ही आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा हो पाएगी।



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